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12/11/2020

अनुबन्ध (Contracts)

13. अनुबन्ध (Contracts)

अनुबन्ध दो या दो से अधिक व्यक्तियों अथवा पक्षों (Parties) के बीच धन की एवज में किसी कार्य को सम्पन्न करने अथवा भण्डार की आपूर्ति करने का लिखित करार है, जिसको सम्पन्न नहीं करने पर दूसरे पक्ष को मुआवजा प्राप्त करने का कानूनी अधिकार प्राप्त हो जाता है। ऐसा करार (Agreement) अनुबन्ध अथवा ठेका कहलाता है।

अनुबन्ध करने के कुछ आधारभूत सिद्धान्त है, जिनका अनुपालन, अनुबन्ध करने वाले अधिकारियों को सुनिश्चित करना चाहिए

(i) ठेके की शर्तें संक्षिप्त और निश्चित होनी चाहिए और इनमें किसी प्रकार की अस्पष्टता और भ्रान्ति की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।

(ii) ठेकों को अन्तिम रूप से भरने के पूर्व उनका मसौदा तैयार करने में यथासम्भव विधि सम्मत और वित्तीय सलाह ली जानी चाहिए।

(iii) जहाँ तक सम्भव हो, ठेके के मानक प्रपत्र (Standard Forms) अपनाए जाने चाहिए जिनमें शर्तों की उपयुक्त पूर्व जाँच पड़ताल की जानी चाहिए।

(iv) एक बार ठेके को अन्तिम रूप दे देने के बाद उपयुक्त वित्तीय अधिकारी के परामर्श के बिना इसकी शर्तों में कोई विषयगत परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए।

(v) अनिश्चित या अपूर्ण देयता (Liability) या किसी अन्य शर्त या किसी असामान्य स्वरूप का कोई ठेका सक्षम वित्तीय अधिकारी की पूर्व सहमति के बिना नहीं किया जाना चाहिए।

(vi) जहाँ भी सम्भव और लाभप्रद हो, ठेके केवल निविदाओं को खुले रूप में आमंत्रित करने के बाद ही दिए जाने चाहिए और जिन मामलों में सबसे कम मूल्य की निविदाएँ स्वीकार न की जाऐं, उनमें इनके कारण अंकित किए जाने चाहिए।

(vii) टेण्डर स्वीकार करते समय अन्य सुसंगत बातों के साथ टेण्डर देने वाले व्यक्तियों और फर्मों की वित्तीय स्थिति पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए।

(viii) ऐसे मामलों में, जिनमें लिखित रूप से ठेका नहीं किया जाता, आपूर्तियों (Supplies) आदि के लिए, कम से कम मूल्य के सम्बन्ध में लिखित करार किए बिना कोई आदेश नहीं दिया जाना चाहिए।

(ix) ठेके के अन्तर्गत किसी ठेकेदार को सुपुर्द की गई सरकारी सम्पत्ति की सुरक्षा की व्यवस्था अवश्य की जानी चाहिए।

(x) लम्बी अवधि का ठेका देते समय, रेलवे को छः माह पूर्व सूचना की अवधि बीतने पर करार निरस्त करने का बिना शर्त अधिकार सुरक्षित रखना चाहिए।

(xi) महालेखा परीक्षक (Auditor General) और उनके निर्देश पर अन्य लेखा परीक्षा अधिकारियों को ठेके की जाँच करने का अधिकार होता है और वे लोक लेखा समिति के सम्मुख ऐसे मामले प्रस्तुत कर सकते हैं, जिनमें स्पर्धा के निमित्त निविदाएँ आमंत्रित न की गई हों या जहाँ ऊँचे मूल्य की निविदाएँ स्वीकार की गई हों या जहाँ प्रक्रिया सम्बन्धी अन्य अनियमितताऐं पाई गई हों।

अनुबन्धों के प्रकार (Kinds of Contracts)

1. एकमुश्त ठेका (Lump-sum Contracts)
एकमुश्त ठेका एक ऐसा ठेका होता है, जिसमें ठेकेदार, इसमें दी गई अवधि में निष्ठ र्गारित कुल धनराशि का कार्य निष्पादित करने या पूर्व निर्दिष्ट एवं लिखित रूप से अंकित मात्रा आपूर्ति करने का दायित्व लेता है। उसको यह धनराशि उसके विशिष्टि के अनुसार और समय से कार्य या आपूर्ति पूरी करने की शर्त पर ही प्राप्त होती है. चाहे उसने अपना कार्य सम्पन्न करने के लिए वास्तविक रूप से जितना और जिस तरह का भी कार्य किया हो या सामानों की आपूर्ति की हो।

इस प्रकार के ठेकों में दरों या मूल्य की तालिका तय कर ली जाती है, कि अमुक कार्य के अमुक पैसे में ठेकेदार कार्य पूरा नहीं कर पाता है तो उसे जितना कार्य किया है. तथा उसके लिए कितनी रकम तय थी, उसके आधार पर भुगतान किया जाएगा।

2. अनुसूचित ठेके (Scheduled Contracts)
अनुसूचित ठेका एक ऐसा ठेका होता है, जिसमें ठेकेदार किसी कार्य या आपूर्ति में सम्मिलित विभिन्न मदों में से प्रत्येक के लिए निर्धारित प्रति इकाई दरों या मूल्य पर, ठेके में विशेष रूप से उल्लिखित कार्य या आपूर्ति निर्दिष्ट समय के भीतर पूरा करने का भार लेता है, इसके लिए उसे जो धनराशि प्राप्त होती है, वह विशिष्टि के अनुसार समय से कार्य या सामानों की आपूर्ति को पूरा करने के लिए किए जा रहे कार्यों में से वास्तविक रूप से निर्धारित मात्राओं और स्वरूपों में किए गए कार्यों या सामानों की आपूर्ति के अनुसार होती है।

3. मूल्याधारित कार्य के ठेके (Price-Work Contracts):
इसका तात्पर्य ऐसे ठेके से होता है, जिसके अन्तर्गत किए जाने वाले कार्य की पूरी मात्रा या माल की आपूर्ति, या किसी निर्धारित अवधि के भीतर किए जाने वाले कार्य की मात्रा या सामानों की आपूर्ति का हवाला दिए बिना विभिन्न प्रकार के कार्य करने या सामानों की आपूर्ति करने के लिए केवल प्रति इकाई दरें या मूल्य स्वीकार किए जाते हैं।

4. दर ठेका (Rate Contracts):
दर ठेका एक ऐसा ठेका होता है, जिसके अन्तर्गत ठेके के चालू रहने की अवधि में ठेकेदार निर्धारित समय के भीतर प्रति इकाई दरों या मूल्यों पर मांग के अनुसार सामानों की आपूर्ति करने का भार लेता है।

5. चालू ठेका (Running Contracts):
चालू ठेका एक ऐसा ठेका होता है जिसके अन्तर्गत इसके चालू रहने की अवधि में ठेकेदार आपूर्ति करने का भार लेता है, और इसमें ठेके का दूसरा पक्ष एक विशेष मात्रा में सामान, जैसा और जब उसके लिए आदेश दिया जाता है, निर्धारित प्रति इकाई दरों या मूल्यों पर, ऐसे आदेश की प्राप्ति की निश्चित अवधि के भीतर, ग्रहण करने का भार लेता है।

विशेष: दर और चालू ठेका मुख्यतया भण्डार के ठेकों पर लागू होता है।

6. निर्धारित मात्रा का ठेका ('Fixed Quantity' Contract):
इसका तात्पर्य ऐसे ठेके से होता है जिसके अन्तर्गत एक या अधिक किश्तों में सामानों की निश्चित मात्रा सुपुर्द की जाती है और प्रत्येक किश्त की सुपुर्दगी एक निश्चित तिथि तक पूरी करनी होती है।

ठेके के दस्तावेज (Contract Documents):

प्रत्येक ठेके इस प्रकार से तैयार किये जायेंगे, जिसमें निहित सभी ऐसे मामले संदेह से परे हों, जिन्हें सम्बन्धित पक्षकार स्वीकार करें। स्वीकृत किए जाने वाले मामलों में निम्नलिखित तथ्य विस्तार के साथ शामिल किये जायेंगे

(क) ठेकेदार को क्या करना है, कब, कहाँ और कैसे इसे सम्पन्न करना है।

(ख) सरकार को क्या करना है और इसकी क्या शर्तें हैं।

(ग) भुगतान, किस कार्य के लिए और किसको करना है तथा भुगतान का तरीका और आधार क्या होगा।

(घ) उपयुक्त पर्यवेक्षण, सरकारी सम्पत्ति की निगरानी और अन्य बाहरी हितों तथा उसके कर्मचारी और कामगारों के हितों के सम्बन्ध में ठेकेदार के दायित्व।

(ङ) आवश्यक शर्तें, जिनके अनुसार कोई परिवर्तन या परिवर्धन (Variations and Modifications) स्वीकृत किए जाने हैं, उन्हें सम्पन्न करने का आदेश देने और आंकलन करने के लिए सक्षम प्राधिकारी और ऐसे आंकलन किस अवसर और किस आधार पर किए जा सकते हैं।

(च) ठेके करने वाले किसी एक पक्ष द्वारा ठेके को भंग करने पर अपनाए जाने वाले उपाय और उसका निर्णय करने की विधि तथा आधार।

(छ) विवादों (Disputes) को तय करने की विधि।

ठेके के आवश्यक हिस्से के रूप में प्रयुक्त दस्तावेज :

(i) निविदाकारों (Tenderer) के लिए निर्दिष्ट निर्देशों सहित निविदा, ठेके की शर्तें. मानक या विशेष शर्तें, विशिष्टियाँ मानक या विशेष (Specification, Standards or Special) मदों की सूची, मात्राएँ और दरें, करार प्रपत्र और निविदा प्रपत्र (Tender Forms) यदि कोई हों।

(ii) ठेकेदार का प्रस्ताव (Contractor's Offer) | 

(ii) निविदा की अग्रिम स्वीकृति (Advance Acceptance of Tender)

(iv) निविदा की औपचारिक स्वीकृति (Formal Acceptance of Tender)

(v) निविदा की अग्रिम स्वीकृति या औपचारिक स्वीकृति में निर्दिष्ट शतों में से किसी भी शर्त में परिवर्तन या फेर-बदल करने वाले दस्तावेज।

ठेके निष्पादित करने के लिए प्राधिकारियों की सक्षमता (Competency of Authorities to Execute Contracts)

भारत के राष्ट्रपति की ओर से प्राधिकृत अधिकारी या उनके अनुमोदन से ठेके निष्पादित किये जायेंगे।

निश्चित राशि के ठेके करने वाले प्राधिकारियों की सक्षमता इस सम्बन्ध में प्रत्येक प्राधि कारी को प्राप्त वित्तीय अधिकारों के अनुसार निर्धारित की जाती है।

कोई भी प्राधिकारी ऐसा ठेका निष्पादित नहीं करेगा-

(i) जो प्रदत्त अधिकारों की सीमा से बाहर हो।

(ii) जो ऐसे कार्य से सम्बन्धित है, जिस पर व्यय या देयता (Liability) चालू नियमों के अनुसार प्राधिकृत नहीं की गई है और जिसके व्यय पर नियंत्रण रखने से सम्बन्धित आदेश नहीं दिए गए हों।

(iii) जिस सम्बन्धित कार्य का व्यय उस अनुमानित व्यय से अधिक है, जिसकी स्वीकृति देने का अधिकार उस प्राधिकारी को नहीं है।

(iv) जिससे वर्तमान नियम या उच्चतम अधिकारी के आदेश का उल्लंघन होता हो। ऐसी स्थिति में सक्षम अधिकारी के अनुमोदन से ही कोई प्राधिकारी ठेका निष्पन्न करने के लिए किसी ठेके पर हस्ताक्षर कर सकता है।

ठेके की शर्तें (Conditions of Contract)

ठेके की शर्ते या तो मानक या विशेष (Standard or Special) हो सकती हैं, जो रेलवे बोर्ड द्वारा निर्धारित की जाती है।

मानक शर्तें सभी ऐसे ठेकों में, जिनमें वे लागू होती है, मुख्य रूप से शामिल की जाती हैं। किसी प्रकार से ऐसी शर्तों के त्रुटिपूर्ण सिद्ध होने पर महाप्रबन्धक द्वारा रेलवे बोर्ड को

इस तथ्य की सूचना दी जाएगी और अन्य सभी मामलों में विधि और वित्त सलाहकारों के परामर्श से इन्हें उपयुक्त ढंग से संशोधित किया जाएगा।

ठेके की असामान्य शर्ते (Unusual Conditions) लगाने के पहले महाप्रबन्धक द्वारा विधि और वित्त सलाहकारों के परामर्श से इन्हें अनुमोदित कराया जाना चाहिए या जिस ठेके से सम्बन्धित हों, यदि उन्हें निष्पादित करना उनके अधिकार सीमा से बाहर हों तो इनका रेलवे बोर्ड द्वारा अनुमोदन करवाया जाना चाहिए।

विशिष्टियाँ (Specifications)

जब भी सम्भव हो, भण्डार नमूने की तुलना में विशिष्टियों के अनुसार खरीदा जाना चाहिए। यदि रेलों पर रेलवे बोर्ड द्वारा स्वीकृत भारतीय मानक (Indian Standards) उपलब् 1 हों तो इन्हीं का प्रयोग किया जाना चाहिए, जिसके अभाव में रेल की मानक विशिष्टि, डी. जी.एस. एण्ड डी. की विशिष्टियों का विशेष रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए। जहाँ किसी प्रकार की विशिष्टियाँ निश्चित न की गई हों, वहाँ ब्रिटिश स्टेण्डर्डस स्पेसीफिकेशन का उल्लेख किया जाना चाहिए। किसी मानक विशिष्टि के अभाव में स्थानीय विशिष्टियाँ तैयार की जानी चाहिए। विशेष संयंत्र (Plants) और सामानों के लिए उपयोगकर्ता विभाग द्वारा या उसके परामर्श से विशिष्टियों तैयार की जानी चाहिए, यदि आवश्यक हो तो रेलवे बोर्ड के अनुसंधान, अभिकल्प और मानक संगठन (RDSO) से तकनीकी सलाह ली जानी चाहिए।

जहाँ गुणवत्ता का विशेष रूप से उल्लेख करना कठिन हो, वहाँ इसको परिभाषित किया जाना चाहिए। जैसे तैयार माल के मामले में मानक नमूने (Sample) का उल्लेख किया जा सकता है और ऐसे सभी मामलों में यह स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि नमूना केवल प्रतिपूरक Supplementary) है और यह विशिष्ट या ड्राइंग का अतिलघन Supersede) नहीं करना। टेण्डर देने के इच्छुक निविदाकारों को ऐसे मानक नमूने देखने या उन्हें प्राप्त करने के लिए पर्याप्त सुविधाएँ दी जानी चाहिए। इसी के साथ उन्हें यह सूचना भी दी जानी चाहिए कि नमूने में कोई खराबी न होने के बावजूद आपूर्तियाँ यथा उपलब्ध स्पेसीफिकेशन और ड्राइंग के अनुरूप ही होनी चाहिए।

जहाँ निविदाकारों से क्रय करने के लिए नमूने मांगने का निर्णय किया जा चुका हो, वहाँ नमूना निश्चित रूप से टेण्डर के साथ दिया जाना चाहिए, जिसके न होने पर टेण्डर पूरी तरह से एकबारगी निरस्त कर दिया जाना चाहिए।

दायिता (Warranty)

ऐसे सभी मामलों में, जिनमें भण्डार में त्रुटियों (Defects) का पता देखकर या प्रयोगशाला में जाँच करने पर भी नहीं लगता, बल्कि प्रयोग में लाने पर ही जानकारी होती है. उनमें इसका दायित्व लेने की एक धारा अवश्य जोड़ी जानी चाहिए।

दरें और मात्राएँ (Rates and Quantities)

ठेके में दरें और मात्राएँ अंकों और शब्दों दोनों में ही अंकित की जानी चाहिए।

वस्तुओं की विवरण सूची (Nomenclature)

जहाँ तक सम्भव हो, ठेके में वस्तुओं की सूची या विवरण के मानक प्रारूप (Standard Forms) अपनाए जाने चाहिए, सभी मामलों में इसकी शब्दावली ऐसी होनी चाहिए कि उसका आशय स्पष्ट हो और वह सभी प्रकार से तर्कसंगत हो और संदेहों से परे हों।

करार प्रपत्र (Agreement Forms)

करार-प्रपत्र या तो स्वतः निविदा फार्म हो सकता है या अलग से दिया जा सकता है। ठेके की शर्ते, विशिष्टियाँ आदि करार-प्रपत्र में ही दी जा सकती है या उसके साथ संलग्न की जा सकती हैं या यदि वे ठेकेदार को तत्काल मिल सकती हैं तो इनका उसमें उल्लेख मात्र किया जा सकता है।

ठेके में फेर-बदल करने के लिए प्राधिकारियों की सक्षमता
(Competency of Authorities to vary Contracts)

ठेके में फेर-बदल का अधिकार केवल ठेके से सम्बन्धित पक्षों को ही होता है। किसी ठेके की शर्तों में किसी प्रकार का फेर-बदल करने का कारण और औचित्य लिखित में अंकित किया जाना चाहिए।

मदों की दरों में परिवर्तन ऐसी संविदाएँ (Contracts) जिनमें मूल्य परिवर्तन की धारा शामिल की गई हो

मूल संविदा को अनुमोदन प्रदान करने वाले प्राधिकारी द्वारा वित्त सलाहकार की सहमति से दरों में परिवर्तन किए जा सकते हैं। यदि इनमें परिवर्तन करने के परिणामस्वरूप ठेके की कुल राशि, उस प्राधिकारी की अधिकार सीमा से बढ़ जाए जिसने मूल संविदा को अनुमोदन प्रदान किया हो तो ऐसी स्थिति में, उस उच्च प्राधिकारी की, जो सम्बन्धित रकम के लिए मंजूरी देने में सक्षम हो, मंजूरी प्राप्त की जाएगी।

मद की मात्रा में परिवर्तन :

मूल संविदा को अनुमोदन प्रदान करने वाला प्राधिकारी मदों की मात्रा में आवश्यक सीमा में परिवर्तन कर सकता है, बशर्ते कि ऐसे परिवर्तन से भारतीय रेल संहिता के नियमों का उल्लंघन न होता हो और यह शर्त भी कि संशोधित संविदा का कुल मूल्य उस प्राधिकारी की अधिकार सीमा से बढ़ नहीं जाएगा, जिसने मूल संविदा को स्वीकृति प्रदान की हो।

पुनः आदेश (Repeat Order):

जब ठेके की अवधि में ठेके पर आपूर्ति के लिए निर्धारित मात्रा से अधिक मात्रा की आवश्यकता पड़ जाती है और मात्रा में यह बढ़ोतरी इतनी अधिक न हो कि उसके लिए नई निविदाएँ आमंत्रित करना उचित न हो, तो वर्तमान ठेके में ही बकाया मात्रा, यदि कोई हो, बढ़ाई जा सकती है। बशर्ते परस्पर बातचीत के परिणामस्वरूप नये टेण्डर आमंत्रित करने की अपेक्षा इससे उपयुक्त शर्तों पर क्रय करना अधिक लाभप्रद हो।

लिमिटेड और सिंगल टेण्डर पर प्राप्त पूर्व स्वीकृत दरों पर सामान्यतया पुनः आदेश नहीं दिए जाने चाहिए।

सुपुर्दगी अवधि में विस्तार (Extension of Delivery Periods)
ठेके में निहित सुपुर्दगी तिथि बीतने पर ठेकेदार से इस सम्बन्ध में कोई पत्राचार नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे ठेका बना रहता है। सामान्यतया सुपुर्दगी तिथि में तब तक कोई वृद्धि नहीं की जानी चाहिए, जब तक कि इसके लिए ठेकेदार द्वारा विशेष रूप से मांग न की गई हो। जब मांग की गई हो. तो सक्षम प्राधिकारी के स्वविवेक से निम्नलिखित शर्तों पर तिथि बढ़ाने की स्वीकृति दी जा सकती है -

(क) सुपुर्दगी की तारीख को ध्यान में रखते हुए कम मूल्य के टेण्डर अस्वीकार करते हुए ठेके की दर स्वीकार नहीं की गई थी।

(ख) सक्षम अधिकारी इस बात से संतुष्ट हैं कि विलम्ब के कारण कोई नुकसान या क्षति नहीं होगी या विशेष क्रम के मामले में, मांग करने वाला पक्ष यह प्रमाण पत्र देता है कि विलम्ब से सुपुर्दगी करने पर कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। और

(ग) यह कि ऐसे किसी मामले में, जिसमें उपर्युक्त एक या दोनों शर्तों का पालन नहीं होता, ऐसी स्वीकृति, आवश्यकतानुसार अपने वित्तीय सलाहकार के परामर्श और विधि सम्मत सलाह लेने के बाद ही दी जायेगी।

सुपुर्दगी अवधि में विस्तार देते समय असफल फर्म से विलम्बित आपूर्ति (Delayed Supply) के कुल मूल्य का 2% और अधिकतम 10% तक की राशि, प्रतिमाह और उसके किसी हिस्से के लिए परिनिर्धारित नुकसानी (Liquidated Damages) के रूप में वसूल की जाएगी। परिनिर्धारित नुकसानी की वसूली से छूट उसी स्थिति में दी जाएगी जबकि, परिस्थितियाँ ऐसी हों कि आपूर्ति करना फर्म के नियंत्रण से बाहर था।

ठेके में अन्यथा विशेष रूप से उल्लिखित न होने पर, डिपो अधिकारी / निरीक्षण अधिकारी/प्रेषिती नीचे दी गई समय-सीमा के अन्तर्गत. देशी या आयातित भण्डारों की विलम्ब से आपूर्ति स्वनिर्णय से स्वीकार कर सकते हैं-

(क) तीन लाख रु. के मूल्य के ठेके                     6 माह तक

(ख) तीन लाख रु. से अधिक और छः लाख रु. तक मूल्य के ऐसे ठेके, जिनमें वास्तविक सुपुर्दगी का समय 6 माह से अधिक न हो                          21 दिन

यह छूट, फिर भी, निम्नलिखित मामलों में लागू नहीं होती

(i) जब शीघ्र सुपुर्दगी देने के लिए अधिक मूल्यों का भुगतान किया गया हो।

(ii) बाजार दरों के अतिशय उतार-चढ़ाव (Market Fluctuation) वाले भण्डारों की आपूर्ति के लिए ठेका दिया गया हो।

(iii) जिन ठेकों में पूर्व अनुमानित क्षतियों (Pre-estimated Damages) की पूर्ति करने की शर्त रखी गई हो।

(iv) तात्कालिक, परिचालनिक तत्परता (Operational Express) और निर्माण कार्यक्रम की मांग पत्रों के लिए दिए गए ठेके।

संशोधन (Modifications):

ठेकों में निर्दिष्ट शर्तों, विशिष्टियों, मात्राओं, दरों आदि में संशोधन सक्षम प्राधिकारी द्वारा ही किया जा सकेगा। ठेके की शर्तों में किए जाने वाले संशोधनों के कारण और उनका औचित्य हर हालत में लिखित रूप से अंकित किया जायेगा।

जमानत (Security):

किसी ठेके को ठीक से पूरा करने के लिए आवश्यक होने पर रेलवे बोर्ड द्वारा निष्क र्गारित जमानत ली जा सकती है।

टिप्पणी - दूसरी रेलों, सरकारी विभागों, राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (NSIC) द्वारा मान्यता प्राप्त लघु उद्योग इकाईयों (SSI) और रजिस्टर्ड फर्मों में से किसी से भी जमानत की राशि लेने की आवश्यकता नहीं है।

जमानत निम्नलिखित रूप में हो सकती है

(i) इण्डियन रेलवे फाइनेन्स कार्पोरेशन का गारण्टी बॉण्ड और के.आर.सी.एल. बॉण्ड

(ii) सरकारी प्रतिभूतियाँ (Govt. Securities Bonds) 

(iii) जमा रसीद, भुगतान आदेश (Pay Orders). डिमाण्ड ड्राफ्ट्स, भारतीय स्टेट बैंक या राष्ट्रीयकृत बैंकों या अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों में से किसी पर भी देय मांग पत्र (Demand Drafts) और गारण्टी बॉण्ड्स

(iv) डाकखाने के बचत खाते में जमा राशि (Post Office Savings)

(v) राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र (National Saving Certificate)

(vi) पूरे किए गए कार्य या आपूर्ति के लिए दिये गए भुगतान में से औसत कटौती, साधारणतया आवाधिक भुगतान में से 10% तक औसत कटौती।

सामान्य (General):

जब महाप्रबन्धक और वित्त सलाहकार एवं उप मुख्य लेखाधिकारी के बीच किसी मामले पर विवाद हो, तो मामले को रेलवे बोर्ड की सलाह के लिए भेजना चाहिए।

कार्य या आपूर्ति आरम्भ करने के पूर्व ठेके का कार्यान्वयन (Execution of Contract prior to commencement of Works or Supplies):

(i) जब तक सक्षम पक्षों द्वारा सम्बन्धित ठेके पर हस्ताक्षर नहीं हो जाते, किसी ठेकेदार को कार्य या सामानों की आपूर्ति आरम्भ करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

(ii) आपातकालीन मामलों जैसे उन कार्यों या आपूर्तियों के मामलों में छूट दी जा सकती है जिससे जीवन या सम्पत्ति की रक्षा हो या बाढ़, दुर्घटना तथा अन्य अकल्पित तात्कालिक (Unforeseen Contigency) मामलों से हुई क्षति की मरम्मत का सम्बन् 1 हो. जिन पर कार्यवाही इसलिए करना जरूरी है ताकि सीधा संचार पुनस्र्थापित और चालू रखा जा सके। ऐसे मामलों में कार्य करने के लिए पर्याप्त मदों और दरों की शर्ते, विशिष्टियाँ इत्यादि पहले से स्वीकार कर ली जानी चाहिए।

(iii) अन्य वैकल्पिक किन्तु कम तात्कालिक आवश्यकता के मामलों में जिनमें ठेके के दस्तावेजों के तैयार या स्वीकृत करने के समय तक कार्य या आपूर्ति को शुरू करने पर रोक नहीं लगाई जा सकती हो, उनमें पहले ही वित्त सलाहकार से परामर्श लिया जाना आवश्यक होना चाहिए।

(iv) ऐसे मामलों में, जिनमें उपर्युक्त उपनियम (1) लागू न हो, मुख्य ठेके की पूर्ति और निष्पादन के लिए कार्यवाही पूरी तत्परता से की जानी चाहिए।


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